पराग, एलर्जी या हे फ़ीवर (hay fever) होने का सबसे आम कारक है। यह पीले रंग का बारीक पाउडर अन्य पौधों को उपजाऊ बनाता है। हवा, पक्षियों, कीड़ों या दूसरे जानवरों के माध्यम से ये पहुँचता है। पराग की पहुँच दूर-दूर तक होने के कारण पराग की एलर्जी दुनिया की सबसे आम एलर्जी में से एक है। दरअसल, दुनिया में हर पाँच में से एक व्यक्ति पराग की एलर्जी से पीड़ित है।*
पराग एलर्जी के सबसे आम कारण पेड़, खरपतवार और घास से निकलने वाले पराग हैं। हालाँकि एक बार पराग से एलर्जी होने के बाद इसके वापिस जाने की संभावना बहुत ही कम होती है, लेकिन उचित दवाओं और एलर्जी शॉट्स की मदद से लक्षणों का इलाज किया जा सकता है। आवारा जानवर भी बड़ी तादाद में मौजूद हैं, जिस कारण जानवरों की त्वचा की मृत कोशिकाओं (रूसी) के प्रति भी लोगों के अतिसंवेदनशील होने का जोखिम रहता है, जिससे रूसी एलर्जी हो सकती है।
एलर्जिक प्रतिक्रियाएँ करने वाले ज़्यादातर पराग, पेड़ों, खरपतवारों और घास से आते हैं। पालतू जानवरों की पेशाब, लार या रूसी में ऐसे कुछ हानि-रहित प्रोटीन होते हैं जिनसे रूसी एलर्जी हो सकती है। पराग एलर्जी मौसमी बदलावों के कारण भी हो सकती है, क्योंकि पराग की संख्या निर्धारित करने में इनकी मुख्य भूमिका होती है। पराग की संख्या वसंत और गर्मियों के मौसम में सबसे ज़्यादा होती है।
जो लोग केवल पराग की एलर्जी से पीड़ित हैं, उन्हें नाक बंद होने, छींक आने, नाक बहने, गले में ख़राश या आँखों में जलन होने की समस्याएँ हो सकती हैं।
सामान्य तौर पर भी और खासकर बसंत और गर्मियों में घर से बाहर कम से कम निकलें। रोज़ाना जब कभी काफी देर तक घर से बाहर रहें, तो घर लौटकर अपने कपड़े बदलें, नहाएँ और शैंपू से बाल धोएँ। पराग के मौसम में खिड़कियाँ बंद रखें, अपने कपड़े बाहर सुखाने के बजाय क्लॉथ ड्रायर में सुखाएँ। आप डॉक्टर की सलाह से, गैर-नशीली एंटी-हिस्टमाइन जैसे फेक्सोफेनाडाइन, लोराटाडाइन आदि का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।