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अक्सर लोग एलर्जी और ज़ुकाम को एक ही समझ लेते हैं, लेकिन ये दोनों अलग-अलग चीज़ें हैं। आइए, हम आपको इनका अंतर बताते हैं:


ऐसा नहीं है कि एलर्जी से कोई नुकसान नहीं होता है। एलर्जी सामान्य से लेकर गंभीर तक हो सकती है, और ये एक गंभीर समस्या है जिसे अनदेखा नहीं करना चाहिए। एलर्जी का इलाज न कराया जाए तो ज़िंदगी का मज़ा ख़राब हो जाता है। उदाहरण के लिए, एलर्जिक रायनाइटिस (हे फ़ीवर) के कारण अच्छी नींद नहीं आती, थकान रहती है और दिन में सुस्ती की समस्या होती है। एलर्जी का इलाज न कराने पर दमा, साइनसाइटिस जैसी पुरानी साँस की समस्याओं और एक्ज़िमा तथा अर्टिकारिया (पित्ती) जैसे त्वचा के विकारों को बदतर बना सकती है। भोजन, दवाओं और कीड़ों के डंक से होने वाली एलर्जी के कारण जानलेवा प्रतिक्रिया हो सकती है, जिसे ऐनफ़ाइलैक्सिस (anaphylaxis) कहा जाता है।

ऐसा होने की संभावना तो ज़रा कम ही होती है। पराग से होने वाली एलर्जी के मामले में फूलों के पराग ज़िम्मेदार नहीं होते हैं। पराग बड़े आकार के और चिपचिपे होते हैं, जो ज़्यादा दूर तक उड़कर नहीं जा सकते। परागण के लिए इन्हें पक्षियों और मधुमक्खियों की ज़रूरत होती है। इसलिए, लोग खुशबूदार फूलों से परेशानी होने की शिकायत करते तो हैं, लेकिन यह शिकायत दरअसल उन्हें आमतौर पर परफ्यूम से पैदा हुई रासायनिक जलन के कारण होती है, जिससे उन्हें छींक आती है। आमतौर पर पेड़ों, घास और खरपतवारों द्वारा निर्मित पराग ही पराग से होने वाली एलर्जी के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। हालाँकि ऐसे कुछ फूल भी हैं जिनसे बचकर रहना चाहिए।

अगर आप पराग, घर के धूल घुन, पशुओं की रूसी और फफूँद के बीजाणुओं से होने वाली एलर्जी से बचने की कोशिश कर रहे हैं, तो एलर्जीकारक के स्रोत से दूर (जैसे मैदानी इलाके से सागर तट की ओर) चले जाने से आपको थोड़े समय के लिए राहत मिल सकती है। दुर्भाग्यवश एलर्जी पीड़ित लोगों में नई-नई तरह की एलर्जी होने की भी अत्यधिक आशंका रहती है, और अक्सर नए पौधों या एलर्जीकारक के दूसरे स्रोतों, जैसे फफूँद या घर के धूल घुन के संपर्क में आने पर कुछ वर्षों में लक्षण दोबारा दिखाई देने लगते हैं। कुछ एलर्जीकारक खास जगहों में ज़्यादा फैले होते हैं, लेकिन कहा जाता है कि एलर्जी से पीड़ित लोगों में नई एलर्जी होने की प्रवृत्ति रहती है, और परिवेश बदलने से इस पर कोई फर्क नहीं पड़ता है।

एलर्जी जानवरों के बालों से नहीं, बल्कि उनकी त्वचा में पैदा होने वाले एक ख़ास प्रोटीन और उनके मूत्र और थूक से होती है। जब आप उन्हें थपथपाते हैं या उनके बालों में ब्रश करते हैं, या जब वो जानवर फर्नीचर से या लोगों के शरीर से अपने शरीर को रगड़ता है, तो त्वचा की अति सूक्ष्म परतें अलग होकर हवा में उड़ने लगती हैं। हालाँकि छोटे बालों वाले पालतू जानवर हवा में कम रूसी छोड़ते हैं क्योंकि उनके बाल कम झड़ते हैं। ऐसे छोटे बालों वाले पालतू जानवर एलर्जिक लोगों के लिहाज़ से बेहतर माने जाते हैं।

पालतू जानवरों, ख़ासकर बिल्ली या घोड़ों से पैदा होने वाले एलर्जीकारक कपड़ों में भी आ सकते हैं। इससे उन लोगों में भी एलर्जी के दौरे शुरू हो सकते हैं जिनके यहां कोई पालतू जानवर न भी हो।

आप हमेशा जैविक भोजन ही करते हैं, तो भी ये मतलब नहीं कि आप खाद्य पदार्थों की एलर्जी से बचे रहेंगे। वास्तव में सबसे ज़्यादा एलर्जीकारक खाद्य पदार्थ तो गाय का दूध, अंडे, मूँगफली,गेहूँ, मछली, शेलफिश जैसे प्राकृतिक और गैर-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ ही हैं।

एलर्जी को रोकने और नियंत्रित करने के कई तरीके मौजूद हैं, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि इसका कोई स्थायी इलाज मौजूद नहीं है। हालाँकि रोग की उचित पहचान और उपायों से दमा और एलर्जी से पीड़ित ज़्यादातर लोग थोड़ी-सी कोशिश के साथ सामान्य और सक्रिय जीवन जी सकते हैं।

दुर्भाग्यवश एलर्जी कई वर्षों तक बनी रह सकती है। जिन शिशुओं को गाय के दूध, सोयाबीन या अंडे से एलर्जी होती है, वे अक्सर केजी तक पहुँचते-पहुँचते इससे छुटकारा पा लेते हैं, लेकिन एलर्जी के कुछ प्रकार ज़िंदगी भर बने रह सकते हैं। इनमें मूंगफली या सीफ़ूड से होने वाली एलर्जी शामिल है।

कालीन, लिनन, गद्दे और घर के अन्य सामानों में धूल और कीड़े-मकोड़े और उनके शौच के कण होते हैं, जो एलर्जी पैदा करने वाले होते हैं। ये पूरी तरह से खत्म तो नहीं किए जा सकते लेकिन इन्हें कम से कम करने के लिए इन सामानों को नियमित रूप से वैक्यूम करना और धोना चाहिए।

वातावरण में मौजूद कारकों से पराग का स्तर बढ़ सकता है, लेकिन सच्चाई इससे ज़्यादा भी है। आपके जीन (genes) भी इसमें भूमिका निभाते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि इस नई जानकारी एक अच्छा पहलू यह है कि इससे एलर्जी के नए उपचार ढ़ूँढ़ने में मदद मिल सकेगी।