फफूँद हर जगह होती है। ये फफूँद आमतौर पर सूखे पत्तों, गीली लकड़ियों या अनकटी घास या खरपतवार वाले खेतों में उगती हैं। ये फफूँद ऐसे बीजाणु पैदा करती है जिनका आकार पराग से भी छोटा होता है। ये एलर्जीकारक कमज़ोर होते हैं, लेकिन ज़्यादा मात्रा में होने पर ये अतिसंवेदनशील प्रतिक्रिया कर सकते हैं। अगर किसी ज़्यादा पैदल चलने वाले व्यक्ति को फफूँद से एलर्जी है, तो यह एलर्जी उसके लिए काफी परेशानी का कारण तो हो सकती है, लेकिन रुकावट कभी नहीं बनती!
फफूँद के बीजाणु बारहों महीने घर के बाहर या अंदर पैदा हो सकते हैं। वसंत और पतझड़ के मौसम में हवा में बड़ी मात्रा में फफूँद के बीजाणु पाए जाते हैं। रात के समय, खासकर तब जब धुंध या नमी हो, या बरसात का मौसम हो, तब फफूँद के बीजाणुओं की संख्या सबसे ज़्यादा हो जाती है।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है, ज़्यादातर फफूँद आम सीलन-भरी जगहों पर होती है। फफूँद के स्रोतों को हिलाने से उसके बीजाणु हवा में आ जाते हैं। फफूँद के इन बीजाण एलर्जिक प्रतिक्रिया पैदा कर सकते हैं।
फफूँद से होने वाली एलर्जी के लक्षण हर व्यक्ति में अलग-अलग होते हैं जो कि मामूली से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। इसके लक्षणों में बंद नाक, बहती नाक, छींक, आँखों में जलन, खाँसी और गले में ख़राश शामिल हैं। फफूँद से होने वाली एलर्जी कभी-कभी मामूली या गंभीर दमा के लक्षण का कारण भी बन सकती है।
सूखे पत्तों के ढेर के पास, सीलन भरी जगहों पर, ग्रीनहाउस में, खड़ी फ़सल के खेतों जैसी जगहों पर जाने से बचें जहाँ फफूँद बहुत ज़्यादा हो सकती है। जंगल में ट्रेकिंग या बैकपैकिंग के लिए जाते समय डस्ट मास्क पहनें। अपने घर के पिछवाड़े और उसके आसपास की जगह को साफ़ और सूखा रखें क्योंकि इन जगहों में फफूँद पैदा होने की संभावना बहुत ज़्यादा होती है। रात को, खासकर बरसात के मौसम में, बाहर निकलने से बचें।